कोरिया। तालाब केवल जल का भंडार नहीं, बल्कि जीवन, संस्कृति और भविष्य के संरक्षक भी होते हैं। गांव और नगर की बसाहट से लेकर पेयजल, सिंचाई और सामूहिक आयोजनों तक, तालाबों ने हमेशा समाज की धड़कनों को संजोकर रखा है। बैकुंठपुर का ऐतिहासिक चेर तालाब भी कभी नगर की पहचान माना जाता था। यह न केवल पेयजल की पूर्ति करता था, बल्कि सिंचाई का साधन और सामाजिक मेलजोल का प्रमुख केंद्र भी रहा।
लेकिन अफसोस है कि आज यह धरोहर उपेक्षा की मार झेल रही है। तालाब की परंपरागत पहचान धीरे-धीरे मिटती जा रही है। चारों ओर गंदगी, अतिक्रमण और जलभराव की अव्यवस्था ने इसके स्वरूप को बिगाड़ दिया है। नगरवासी कहते हैं कि कभी जिस तालाब से पूरे नगर को जीवन मिलता था, वही तालाब आज बदहाल स्थिति में है। नगरपालिका बैकुंठपुर और जिम्मेदार तंत्र की चुप्पी इस पर सवाल खड़े करती है कि जब “तालाब आज भी खरे हैं”, तो हम क्यों खरे नहीं उतर पा रहे? प्रशासन द्वारा कई बार तालाब के जीर्णोद्धार की घोषणाएँ की गईं, लेकिन ये योजनाएँ केवल कागज़ों में सीमित रह गईं। धरातल पर कोई ठोस पहल अब तक नजर नहीं आई। विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि आज चेर तालाब को पुनर्जीवित किया जाए तो यह न केवल बैकुंठपुर की प्यास बुझाने का साधन बनेगा, बल्कि पर्यावरण को संजीवनी देने में भी कारगर सिद्ध होगा। तालाब का संरक्षण आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अमूल्य धरोहर साबित हो सकता है। स्थानीय नागरिकों का कहना है कि तालाबों को बचाना केवल प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि समाज की भी नैतिक जिम्मेदारी है। क्योंकि तालाब केवल जल का स्रोत नहीं, बल्कि सामूहिक आस्था और संस्कृति का हिस्सा हैं। अब समय है कि प्रशासन, जनप्रतिनिधि और समाज मिलकर चेर तालाब की सुध लें। तालाब को बचाना दरअसल अपने भविष्य को बचाने जैसा है। यदि आज इसे पुनर्जीवित करने के प्रयास नहीं किए गए, तो आने वाली पीढ़ियाँ इस अमूल्य धरोहर से वंचित रह जाएँगी। तालाब बचाने की मुहिम केवल पर्यावरण या विकास की दृष्टि से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक अस्तित्व के लिए भी अनिवार्य है। यही समय है जब हर जिम्मेदार नागरिक को आगे बढ़कर चेर तालाब को बचाने की दिशा में कदम उठाना चाहिए।
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