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यातायात विभाग की लापरवाही और दोहरे मापदंडों से लोग त्रस्त अवैध वसुली चरमसीमा पर - सुत्र

 


कोरीया। जिले में यातायात विभाग के द्वारा लगातार 365 दिन वाहन जांच की कार्रवाई किए जाने का दावा किया जाता है, लेकिन वास्तविकता कुछ और ही कहानी बयां करती है। सूत्रों की मानें तो विभाग ने अब तक 4 लाख लोगों को हेल्मेट पहनने के लिए जागरूक किया है, बावजूद इसके विडंबना यह है कि आज भी 40 प्रतिशत से अधिक लोग नियमों को दरकिनार कर बिना हेल्मेट के ही सड़कों पर फर्राटे भरते नजर आते हैं। नतीजा यह होता है कि प्रतिदिन जिले में सड़क दुर्घटनाओं की घटनाएं घट रही हैं।

सूत्रों का कहना है कि यातायात विभाग के अधिकारी शहर से नदारद रहते हैं और आधे से अधिक कर्मचारी सीमावर्ती इलाकों में वाहनों की जांच और कथित अवैध वसूली में लगे रहते हैं। शहर के भीतर व्यवस्था बनाए रखने के लिए मात्र दो कर्मचारी तैनात रहते हैं—एक कुमार चौक और दूसरा महलपारा चौक पर। नियमों के अनुसार वाहन जांच के दौरान डीएसपी रैंक के अधिकारी का उपस्थित रहना अनिवार्य होता है, लेकिन अधिकांश मामलों में एसआई रैंक का अधिकारी तक मौजूद नहीं रहता। शहर की सड़कों पर रोजाना यातायात नियमों की धज्जियां उड़ाते वाहन चालक आसानी से नजर आ जाते हैं। नाबालिगों के वाहन चलाने की समस्या अलग ही है। सूत्रों का कहना है कि रसूखदार परिवारों के नाबालिग बच्चों का जलवा कायम है, उनके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती, वहीं गरीब तबके के नाबालिगों के वाहनों को घर से उठा कर थाने ले आया जाता है। यह भेदभावपूर्ण रवैया लोगों में आक्रोश पैदा कर रहा है।

नगर, महोरा, कटगोडी घाट और डुमरिया में जब यातायात विभाग वाहन जांच करता है, तो वहां रसूखदारों की काली फिल्म लगी गाड़ियां आसानी से निकल जाती हैं। वहीं आम नागरिक, जो महज बाजार से सामान लेने निकले होते हैं, उनके वाहन का 300 रुपये का चालान काट दिया जाता है। सूत्र बताते हैं कि इन दोहरे मापदंडों से लोग परेशान हो चुके हैं, लेकिन सिस्टम में सुधार की कोई उम्मीद नजर नहीं आती। बसों और ट्रकों के संचालन में भी कई गंभीर अनियमितताएं देखने को मिलती हैं। सूत्रों का कहना है कि बसों को प्रतिमाह टोकन दिया जाता है और उसके बाद चालक सड़कों को अपनी जागीर मानकर जहां-तहां वाहन रोक देते हैं। इसी तरह ट्रकों से भी हर महीने टोकन दे कर लाखों रुपये की वसूली होती है। हर राज्य से आने वाली ट्रकों का महिने का तय मापदंड है, यातायात अधिकारियों की मौजूदगी में ही नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ती रहती हैं। यही नहीं, सूत्र यह भी बताते हैं कि विभाग के कई कर्मचारी वर्षों से एक ही जगह जमे हुए हैं और करोड़ों की संपत्ति अर्जित कर चुके हैं। हालत यह है कि अधिकारी खुद मामूली दवाइयों तक का खर्च उठाने से बचते हैं और उसकी भरपाई छुट देने के नाम पर अवैध वसूली से करते हैं। कुल मिलाकर जिले में यातायात व्यवस्था का हाल बेहद चिंताजनक है। दोहरे मापदंड, रसूखदारों को संरक्षण और गरीबों पर सख्ती की नीति ने लोगों का भरोसा तोड़ दिया है। अब देखना होगा कि इस व्यवस्था में सुधार कब और कैसे होता है।

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