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डीएमएफ शाखा में नियमों को ताक पर रखकर पदस्थ लिपिक आठ वर्षों से जमे, पदोन्नति के बाद भी नहीं हुआ स्थानांतरण


बैकुण्ठपुर। जिला कलेक्टर कार्यालय के जिला खनिज न्यास (DMF) शाखा में पदस्थ एक लिपिक की हालिया पदोन्नति के बाद भी उसी शाखा में बने रहना कई गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। अमूमन शासकीय सेवा नियमों के अनुसार पदोन्नति के उपरांत अधिकारी/कर्मचारी का स्थानांतरण अन्य शाखा या अन्य जिले में किया जाता है, ताकि पारदर्शिता बनी रहे और एक ही स्थान पर लंबे समय तक जमे रहने से संभावित भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सके। लेकिन कोरिया जिले में यह नियम वर्षों से ताक पर रखा गया है। सूत्रों के अनुसार संबंधित लिपिक बीते लगभग आठ वर्षों से लगातार डीएमएफ शाखा में पदस्थ है। न तो उसका शाखा परिवर्तन किया गया और न ही पदोन्नति के बाद स्थानांतरण। अब हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि डीएमएफ से जुड़े शासकीय दस्तावेज सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं, जो गोपनीयता नियमों का सीधा उल्लंघन है। इससे यह आशंका और गहराती है कि शाखा में प्रशासनिक नियंत्रण पूरी तरह कमजोर पड़ चुका है। सूत्र यह भी दावा कर रहे हैं कि डीएमएफ मद से यदि नाली, पुल, पुलिया, सड़क जैसे निर्माण कार्य स्वीकृत कराने हों तो 10 से 15 प्रतिशत तक “कमिशन” देना पड़ता है, तभी मनचाहा काम मिल पाता है। यदि यह आरोप सही पाए जाते हैं तो यह सीधे-सीधे भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है। नियमों की बात करें तो छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1965 के तहत शासकीय सेवकों को ईमानदारी, निष्ठा और कर्तव्यपरायणता से कार्य करना अनिवार्य है। वहीं सामान्य प्रशासन विभाग के स्थानांतरण दिशा-निर्देशों के अनुसार एक ही पद या शाखा में लंबे समय तक पदस्थापना को हतोत्साहित किया गया है। इसके अतिरिक्त सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम एवं शासकीय गोपनीयता से जुड़े नियमों के तहत दस्तावेजों का सार्वजनिक होना गंभीर अपराध माना जाता है। अब सवाल यह है कि आखिर किसकी छत्रछाया में नियमों को दरकिनार किया जा रहा है? क्या जिला प्रशासन इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कर दोषियों पर कार्रवाई करेगा, या फिर नियम यूं ही “रे के धरे” रह जाएंगे?

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