सूरजपुर। भैयाथान तहसील का बहुचर्चित मामला इन दिनों सुर्खियों में छाया हुआ है जिसमें आमजन मानस भी इस मामले में होने वाले कार्यवाही का बेसब्री से इंतजार कर रहे है इसी बीच शैलकुमारी दुबे के परिवार जनों ने फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र को जब्त कर कार्यवाही करने की मांग को लेकर भी पुलिस अधीक्षक सूरजपुर को एक शिकायत आवेदन भी प्रस्तुत किया है। शिकायतकर्ताओं ने पुलिस अधीक्षक को बताया है की कैसे एक कलयुगी पुत्र ने अपनी सौतेली माँ को कागजों में एक नहीं अलग अलग समय में दो बार मृत बताकर दो स्थानों की भूमि विक्रय की है। ग्राम कोयलारी, पटवारी हल्का नंबर 11, तहसील भैयाथान, जिला सूरजपुर (छ.ग. ) में पं रतन शाह दुबे का गौतम गोत्रीय वंशजों का कुल दो मुहल्लों में निवासरत है जो कि स्टेट काल से पटेल और भैयाथान (झिलमिली ) के राजपरिवार के राजपुरोहित रहे हैं। इन्हीं के कुल में इनके पौत्र पण्डित बालगोविन्द दुबे के पुत्र विद्वान ब्राह्मण द्वारका प्रसाद दुबे के चार पुत्रों के सभी पुत्र रामकृपाल दुबे, महेंद्र दुबे, गोपेश दुबे , दीपेश दुबे रविशंकर दुबे, सतीश दुबे, राजेश दुबे, सीधेश दुबे ने पुलिस अधीक्षक महोदय सुरजपुर से विरेन्द्र दुबे के कृत्यों से पीड़ित होकर उसके विरूद्ध शिकायत करते हुये कहा कि आपराधिक प्रवृत्ति के विरेन्द्र नाथ दुबे द्वारा जीवित शैल कुमारी दुबे को दो बार मृत घोषित कर शैल कुमारी के निजी जमीन के साथ ही परिवार की सम्मिलात खाते की भूमि को सांठगांठ से एक पक्षीय बंटवारा करवा के बेचा जा रहा है जिससे पूरा परिवार त्रस्त है। इस संबंध में शिकायतकर्ताओं ने बताया की ग्राम कोयलारी के सम्मिलात खाते के भूमि स्वामी पण्डित द्वारका प्रसाद दुबे सूरजपुर के नगर पुरोहित भी थे उनके चार पुत्रों पण्डित किशुन राम ,पण्डित विश्वनाथ दुबे, पण्डित राधेश्याम दुबे व पण्डित ओंकार नाथ दुबे में तीसरे पुत्र पण्डित राधेश्याम दुबे जो कि वन विभाग में रेंजर के पद पर कार्यरत थे, उनके तीन विवाह हुये पहली पत्नि ऋद्धि से 1954 में विरेन्द्र का जन्म हुआ और जन्म देने के अल्प महीनों में उनका स्वर्गवास हो गया। इसके एक वर्ष पश्चात् उन का विवाह थाड़पाथर ( बिहारपुर ) निवासी विश्वनाथ पाठक की पुत्री सोनामति (सोनकुंवर ) से भोलाप्रसाद पाण्डेय के द्वारा सम्पन्न कराया गया। ग्राम बेदमी के निवासी और सरगुजा के जनरल काउंसलर भोलाराम पाण्डेय सोनकुंवर के मामा थे और सोनकुंवर ननिहाल में ही रहती थी
विवाह के दो वर्ष पश्चात उनकी भी मृत्यु हो गई। जिसके लगभग डेढ़ वर्ष के पश्चात राधेश्याम दुबे का तृतीय विवाह शैलकुमारी से हुआ जिनसे दो पुत्री और तीन पुत्र हैं।
दो अलग अलग बार शैलकुमारी को मृत बता बेची जमीन :
वर्ष 1966 में शैलकुमारी दुबे ने ग्राम नमनाकलां ,अम्बिकापुर में 17 डिसमिल भूमि क्रय की जिसे विरेन्द्र नाथ दुबे ने शैलकुमारी को 1978 में मृत बताते हुये अपने आप को उनका एकमात्र वारिस होने का फर्जी दावा कर राजस्व अधिकारियों से सांठगांठ कर 1984 में नामान्तरण करवा कर देवनारायण जायसवाल को रजिस्टर्ड विक्रय पत्र के माध्यम से बेच दिया | इसकी सूचना मिलने पर शैलकुमारी दुबे सौतेला पुत्र होने के पश्चात भी विरेन्द्र के विरूद्ध एफ.आई.आर नहीं किया है और माननीय न्यायालय अनुविभागीय अधिकारी अम्बिकापुर के समक्ष नामान्तरण निरस्त करने को अपील करती हैं जिस पर श्रीमान के.आर .मेहरे की न्यायालय ने 30/11/1985 को अपने आदेश में शैलकुमारी को जीवित मानते हुये शैलकुमारी के पक्ष में नामान्तरण करने का आदेश दिया ,शैल कुमारी उस भूमि पर सतत काबिज रहीं। बिरेन्द्र दुबे इस प्रकरण पर जेल जाने के भय से इस पर चुप रहे पर अपने कृत्यों से समूचे परिवार को त्रस्त करता रहा। इसी बीच विरेन्द्र नाथ दुबे थाना रघुनाथनगर से दिनांक 09/02/1967 का शैलकुमारी दुबे का एक और फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र 2006 में बनवाता है और तहसील अम्बिकापुर से शैलकुमारी को फौत बताकर और उनका फर्जी एकमात्र उत्तराधिकारी होने का दावा कर नामान्तरण आदेश करवा लेता है। लेकिन वह आदेश पालन नहीं करवाता, क्योंकि उसे भय था कि राधेश्याम दुबे अभी जीवित हैं और वे दूसरी बार शैलकुमारी को मृत बताये जाने पर विरेन्द्र को क्षमा नहीं करेंगे और उसके विरुद्ध एफ. आई. आर. अवश्य करवायेंगे इसीलिये विरेन्द्र दुबे राधेश्याम को वृद्धावस्था में लड़ाई झगड़ा कर के पीड़ित करने लगता है जिससे वे शीघ्र मरें और विरेन्द्र, अपना खेल खेल सकें। सी दौरान राधेश्याम दुबे ने अपनी पत्नी शैलकुमारी से नमनाकलां की भूमि विक्रय करवा दी। विरेन्द्र के पक्ष में नामान्तरण आदेश धरा का धरा रह गया। पण्डित राधेश्याम दुबे के 2010 में देहावसान होने पर कमलेश दुबे पटवारी को धमकाने लगा कि तुमने जमीन विक्रय के दस्तावेज कैसे तैयार किये जबकि भूमि स्वामी उसके पिता विरेन्द्र हैं तब शैलकुमारी और परिजनों ने विरेन्द्र के विरुद्ध कोतवाली अम्बिकापुर में इसकी सूचना दी और विरेन्द्र को गिरफ्तार कर चालान किया गया। बाद में विरेन्द्र के छोटे पुत्र छोटु के दुखद निधन होने पर उपजे वातावरण और विरेन्द्र द्वारा क्षमायाचना किये जाने पर केस पर ध्यान न देकर बचा लिया गया। इस प्रकरण में विरेन्द्र को दोषमुक्त ही किया गया है न कि शैलकुमारी को मृत घोषित किया गया है। केश में बचाये जाने पर भी विरेन्द्र डूबेने दुष्टता न छोड़ी और शैलकुमारी दुबे की करकोटी ,तहसील भैयाथान जिला सूरजपुर स्थित भूमि का नामान्तरण दिनांक 09/02/1967 के फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र के आधार पर करवा कर बेच भी दिया जिसमें संजय राठौर तहसीलदार की संलिप्तता होने पर संभागायुक्त सरगुजा ने उसे निलम्बित भी कर दिया है। ध्यान देने योग्य मुख्य बात यह है कि जिस दिनांक 09/02/1967 के फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र के आधार पर नामान्तरण करवा कर बेचा गया है उसे शैलकुमारी दुबे ने दिनांक 11/08/1976 को क्रय की।
बीरेंद्र दुबे ये तो बता दो...
बीरेंद्र दुबे ने शैलकुमारी दुबे को 1978 व 1967 दोनों में दो बार मृत बताकर दो स्थानों नमनाकलां अम्बिकापुर व करकोटी,भैयाथान की भूमि नामान्तरित करवा के बेची,अब इस बारे में तो बीरेंद्र दुबे ही बता सकते है शैलकुमारी की मृत्यु एक बार होगी कि दो बार? वहीं एक तरफ अब इस मामले को लेकर अब आम जन मानस में चर्चा हो रही है कि इतना बड़ा संगीन अपराध घटित होने के बाद भी जिला प्रशासन द्वारा तो प्रारंभिक जांच में तहसीलदार को दोषी मानते हुए निलंबन की कार्यवाही कर दी गई है कि किंतु पुलिस प्रशासन के द्वारा इस मामले को लेकर कोई भी कार्यवाही अब तक नहीं की गई है। वहीं दूसरी तरफ कुछ बुद्धजीवियों का यह भी कहना है कि पुलिस प्रशासन और जिला प्रशासन इस मामले में कोई ठोस कार्यवाही करने वाली है इस कारण भी विलंब हो रहा है।
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