सूरजपुर/भैयाथान। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के नाम पर गरीबों के हक की खुली लूट का एक और काला चेहरा बेनकाब हुआ है। भैयाथान जनपद पंचायत की ग्राम पंचायत सलका में लाखों रुपये के गबन का सनसनीखेज मामला सामने आया है। सूचना के अधिकार (RTI) से उजागर दस्तावेज चीख-चीखकर गवाही दे रहे हैं कि भ्रष्टाचार की जड़ें पंचायत से लेकर जनपद और जिला स्तर के अधिकारियों तक गहरी पैठी हैं। फिर भी, प्रशासन की तलवार सिर्फ सरपंच, सचिव और रोजगार सहायकों पर चल रही है, जबकि बड़े अफसरों पर रहस्यमयी खामोशी छाई है। आखिर यह संरक्षण किसका और क्यों....?
नजरें अब प्रशासन के अगले कदम पर टिकी हैं। क्या सच सामने आएगा, या फिर भ्रष्टाचार की स्याह परतें एक और बार दब जाएंगी...?
कुलमिलाकर क्या गरीबों के हक की इस लूट का अंत होगा, या फिर यह सिलसिला यूं ही चलता रहेगा...?
कागजों पर ‘विकास’, जमीन पर सन्नाटा
RTI के खुलासों ने मनरेगा और 15वें वित्त आयोग के तहत हुए फर्जीवाड़े की पोल खोल दी है। ग्राम पंचायत सलका में कई निर्माण कार्य केवल दस्तावेजों में ‘पूरा’ कर दिए गए। कूप निर्माण से लेकर अन्य कार्यों तक, लाखों रुपये का भुगतान मजदूरी और सामग्री के नाम पर कर दिया गया, लेकिन स्थल निरीक्षण में ये कार्य धरातल पर गायब मिले। हैरानी की बात यह है कि कार्य पूर्णता प्रमाणपत्र में लगाए गए फोटो और जियो-टैगिंग की तस्वीरें तक अलग-अलग हैं। फिर भी, अधिकारियों ने बिना पलक झपकाए हस्ताक्षर कर भुगतान की राह साफ कर दी।
जांच के सवाल, जवाब कौन देगा...?
कलेक्टर के निर्देश पर हुई जांच ने गबन की पुष्टि तो कर दी, लेकिन कई सवाल अब भी हवा में तैर रहे हैं:
- जब कार्य अस्तित्व में ही नहीं था, तो मूल्यांकन और सत्यापन का ढोंग कैसे रचा गया....?
- कार्यक्रम अधिकारियों ने बिना स्थल जांच के भुगतान की सिफारिश क्यों की....?
- जनपद और जिला स्तर के अफसर, जो अंतिम स्वीकृति देते हैं, उनकी भूमिका की जांच क्यों नहीं....?
- फर्जी फोटो और दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने वाले अधिकारियों को क्लीन चिट कैसे.....?
छोटों पर गाज, बड़ों को ‘छत्रछाया’
जांच के बाद कुछ सरपंच, सचिव और रोजगार सहायकों से राशि वसूली का पत्र तो जारी हुआ, लेकिन जनपद और जिला स्तर के अधिकारियों की जवाबदेही तय करने में प्रशासन के पसीने छूट रहे हैं। सूत्रों का दावा है कि विभागीय साठगांठ और राजनीतिक दबावों ने इन अफसरों को अभेद्य कवच पहना दिया है। नतीजा? छोटे कर्मचारियों को बलि का बकरे बनाकर मामले को रफा-दफा करने की कोशिश। यह महज एक घोटाला नहीं, बल्कि सरकारी तंत्र का वह घिनौना रूप है, जो गरीबों का हक छीनकर मलाई खा रहा है।
जनता का आक्रोश: ‘समान दोष, समान सजा’
ग्रामीणों और समाजसेवियों का आक्रोश बढ़ रहा है। उनका सवाल साफ है—अगर पंचायत स्तर पर कार्राई हो सकती है, तो जनपद और जिला स्तर के अफसरों को क्यों बख्शा जा रहा....?RTI कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि यह सिर्फ भ्रष्टाचार नहीं, बल्कि एक सुनियोजित लूटतंत्र है, जो सरकारी योजनाओं को खोखला कर रहा है।। ग्रामीणों की मांग है कि दोष की गंभीरता के आधार पर सभी स्तरों पर कड़ी कार्यवाही हो, वरना यह आंदोलन और तेज होगा।
प्रशासन की अग्निपरीक्षा
यह मामला अब जिला प्रशासन के लिए कसौटी बन चुका है।। अगर बड़े अधिकारियों पर कार्राई नहीं हुई, तो यह संदेश जाएगा कि भ्रष्टाचार को ऊंची कुर्सियों का संरक्षण प्राप्त है।। समाजसेवी और RTI कार्यकर्ता इस मामले को उच्च स्तर तक ले जाने की तैयारी में हैं। सवाल यह है कि क्या गरीबों के हक की लूट का यह सिलसिला थमेगा, या फिर अफसरशाही का यह खेल यूं ही चलता रहेगा....?
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