गौरेला–पेंड्रा–मरवाही। जिले में इन दिनों कानून व्यवस्था को लेकर ऐसे हालात सामने आ रहे हैं, जो लोकतांत्रिक मूल्यों पर गंभीर प्रश्न खड़े करते हैं। ग्राम पंचायत कुड़कई का मामला इसका ताजा उदाहरण है, जहाँ पंचायत सचिव पर लाखों रुपये के वित्तीय अनियमितताओं के आरोप हैं, लेकिन कार्रवाई आरोपित पर नहीं, बल्कि मामले को उजागर करने वाले पत्रकारों पर होती दिखाई दे रही है। ग्रामीणों द्वारा सचिव के विरुद्ध विकास कार्यों में भ्रष्टाचार को लेकर लिखित शिकायत दी गई थी। शिकायत के बाद जब स्थानीय पत्रकारों ने जनहित में इस विषय को प्रमुखता से प्रकाशित किया, तो प्रशासन को जांच समिति गठित करनी पड़ी। यहीं तक मामला सामान्य प्रतीत होता है, लेकिन इसके बाद घटनाक्रम ने अलग ही मोड़ ले लिया। जांच शुरू होने से पहले ही आरोपित सचिव द्वारा पत्रकारों के खिलाफ पलटवार करते हुए “अवैध वसूली” जैसे गंभीर आरोप लगाए गए। हैरानी की बात यह रही कि बिना प्राथमिक जांच और तथ्यों की पुष्टि के, पत्रकारों पर सीधे गैर-जमानती धाराओं में मामला दर्ज कर लिया गया। इससे आम जनता में यह सवाल उठने लगा है कि क्या अब सच लिखना अपराध की श्रेणी में आ गया है? पेंड्रा थाना प्रभारी रणछोड़ दास सेंगर की कार्यप्रणाली भी सवालों के घेरे में है। जहां एक ओर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों पर कोई त्वरित कार्रवाई नजर नहीं आती, वहीं पत्रकारों के खिलाफ शिकायत मिलते ही तत्काल FIR दर्ज कर दी जाती है। इसे लेकर क्षेत्र में दोहरे मापदंड अपनाने के आरोप लग रहे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि थाना क्षेत्र में अवैध शराब बिक्री और मादक पदार्थों का कारोबार खुलेआम चल रहा है, लेकिन इन गतिविधियों पर प्रभावी कार्रवाई नहीं होती। इसके विपरीत, जब बात पत्रकारों पर कार्रवाई की आती है, तो बिना जांच-पड़ताल के पुलिस की तत्परता देखते ही बनती है। इस पूरे घटनाक्रम ने यह आशंका और गहरी कर दी है कि क्या पुलिस व्यवस्था निष्पक्ष न्याय के बजाय दबाव में काम कर रही है। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ माने जाने वाले पत्रकार आज स्वयं न्याय की गुहार लगाने को मजबूर हैं। हालांकि मामले में जांच समिति गठित की गई है, लेकिन जब तक दोषियों पर ठोस कार्रवाई नहीं होती और पत्रकारों पर दर्ज मामलों की निष्पक्ष समीक्षा नहीं की जाती, तब तक इस समिति की उपयोगिता पर सवाल बने रहेंगे। गौरेला–पेंड्रा–मरवाही जिले की यह स्थिति न केवल कानून व्यवस्था, बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी गंभीर चिंता पैदा करती है। अब देखना यह होगा कि प्रशासन निष्पक्ष जांच कर विश्वास बहाल करता है या फिर यह मामला भी फाइलों में दबकर रह जाता है।

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