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मलाईदार पद से हटने का नाम नहीं ले रहे लिपिक, जिला खनिज न्यास विभाग में वर्षों से जमे रहने पर उठ रहे सवाल

 


कोरिया। जिले में ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर प्रशासनिक सख्ती और पारदर्शिता की बातें अक्सर सुनाई देती हैं, लेकिन हकीकत इसके उलट दिखाई देती है। जिला खनिज न्यास (DMF) विभाग में वर्षों से जमे लिपिक को लेकर अब सवाल उठने लगे हैं। बताया जाता है कि यह पद इतना "मलाईदार" माना जाता है कि यहां पदस्थ कर्मचारी स्थानांतरण से बचने के हर संभव प्रयास में जुटे रहते हैं। जिला खनिज न्यास विभाग में हर साल करोड़ों रुपये का फंड आता है। इस राशि का उपयोग जिले के विभिन्न विभागों और जनहितकारी कार्यों के लिए किया जाता है। जाहिर है, इतनी बड़ी राशि का संचालन और उससे जुड़ी फाइलें संभालना एक जिम्मेदार कार्य है, लेकिन इसके साथ ही इस पद को लेकर आकर्षण भी कम नहीं है। यही वजह है कि लंबे समय से एक ही लिपिक यहां पर डटे हुए हैं और उनका स्थानांतरण नहीं हो पा रहा है।

खबर का असर, लेकिन आधा

हाल ही में एक मीडिया रिपोर्ट का असर देखने को मिला। सार्वजनिक स्वास्थ्य यांत्रिकी (PHE) विभाग में लगभग 28 वर्षों से अंगद के पैर की तरह जमे बैठे एक लिपिक को आखिरकार भारमुक्त कर दिया गया। इस कार्रवाई को लोगों ने सकारात्मक कदम माना, लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि यही नियम जिला खनिज न्यास विभाग पर क्यों लागू नहीं हो रहा।

क्या इतनी है पहुंच?

आम चर्चा है कि DMF में पदस्थ लिपिक की इतनी मजबूत पकड़ और पहुंच है कि उनका स्थानांतरण वर्षों से अटका हुआ है। जबकि जिला प्रशासन बार-बार दावा करता रहा है कि किसी भी विभाग में लंबे समय से पदस्थ कर्मचारियों को रोटेशन नीति के तहत इधर-उधर किया जाएगा। फिर DMF में यह नीति क्यों लागू नहीं हो रही? क्या वास्तव में लिपिक की इतनी ऊंची पहुंच है कि अधिकारियों के आदेश भी बेअसर हो रहे हैं?

पारदर्शिता पर उठ रहे सवाल

डीएमएफ फंड का उपयोग शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, सड़क, रोजगार और जनहित के अन्य कार्यों के लिए किया जाता है। इस फंड के संचालन में पारदर्शिता जरूरी है, लेकिन जब एक ही कर्मचारी वर्षों तक इस पद पर बैठा रहे, तो स्वाभाविक रूप से संदेह पैदा होता है। लोगों का कहना है कि ऐसे मलाईदार पदों पर लगातार बने रहने वाले कर्मचारियों की कार्यप्रणाली की जांच की जानी चाहिए और समय-समय पर उनका स्थानांतरण भी किया जाना चाहिए।

जिम्मेदारी किसकी?

अब सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर जिम्मेदारी किसकी है? क्या विभागीय अधिकारी इस स्थिति से अनजान हैं, या फिर जानबूझकर आंख मूंदे बैठे हैं? यदि नियम सबके लिए समान है, तो DMF में पदस्थ लिपिक को दूसरे विभाग में भेजने में हिचकिचाहट क्यों?

जनता की अपेक्षा

जिले की जनता चाहती है कि जैसे PHE विभाग में कार्रवाई हुई, वैसे ही DMF विभाग में भी जमे लिपिक का तत्काल स्थानांतरण किया जाए। इससे न केवल प्रशासन की पारदर्शिता पर विश्वास बढ़ेगा बल्कि यह संदेश भी जाएगा कि "नियम सबके लिए समान" है।

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