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कोरिया जिले में स्थानांतरण नीति ध्वस्त – मलाईदार पदों पर वर्षों से जमे लिपिक, प्रशासन मौन!

 


कोरिया। जिले में शासन की स्थानांतरण नीति को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। एक ओर कई विभागों में अधिकारियों-कर्मचारियों का प्रशासनिक स्थानांतरण कर दिया गया है, तो दूसरी ओर कई कर्मचारी वर्षों से मलाईदार पदों पर जमे हुए हैं और उन्हें कोई छू भी नहीं पा रहा है। यही नहीं, जिनका स्थानांतरण हो भी चुका है, उन्हें महीनों गुजर जाने के बाद भी भारमुक्त नहीं किया जा रहा है। इससे साफ हो रहा है कि जिले में स्थानांतरण नीति का पालन कागजों में ही हो रहा है, जमीनी हकीकत कुछ और है।

जानकारी के अनुसार, पीएचई विभाग में एक लिपिक पिछले 24 वर्षों से एक ही जगह पर जमे हुए थे। शासन-प्रशासन ने उन्हें स्थानांतरण आदेश तो जारी कर दिया, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि अब तक उन्हें भारमुक्त नहीं किया गया है। सूत्रों का कहना है कि यह लिपिक विभाग के अंदर एक “मलाईदार पद” पर हैं, जहां से विभागीय फाइलों से लेकर टेंडर और भुगतान तक के कई अहम कार्य निकलते हैं। ऐसे पद पर बने रहने से न केवल व्यक्तिगत लाभ होता है, बल्कि कई अधिकारियों और प्रभावशाली लोगों की भी ‘सुविधा’ बनी रहती है। शायद यही कारण है कि उनका स्थानांतरण होने के बाद भी उन्हें राहत नहीं दी जा रही है।

इसी तरह, कलेक्टर कार्यालय के डीएमएफ शाखा में पदस्थ एक लिपिक पर भी सवाल उठने लगे हैं। सूत्र बताते हैं कि यह लिपिक भी वर्षों से उसी जगह पर पदस्थ हैं। माना जा रहा है कि मलाईदार शाखा होने के चलते यहां प्रतिनियुक्ति और पदस्थापना के खेल में प्रभावशाली हाथ सक्रिय हैं। बताया जाता है कि इस लिपिक के पीछे कलेक्टर के निज सहायक का संरक्षण है, जिसके चलते उन्हें बार-बार उसी शाखा में पदस्थ किया जाता रहा है। सवाल उठता है कि आखिर एक ही व्यक्ति को वर्षों तक एक ही विभाग या शाखा में रखने की नीति क्यों बनाई गई है और इसमें किसका हित जुड़ा हुआ है?

स्थानांतरण नीति का मकसद साफ है – प्रशासन में पारदर्शिता लाना और विभागीय कार्यों में निष्पक्षता सुनिश्चित करना। लेकिन कोरिया जिले की तस्वीर इसके ठीक उलट दिखाई दे रही है। यहां नियम तोड़कर कुछ चुनिंदा कर्मचारियों को वर्षों से मलाईदार पदों पर बनाए रखना, जबकि जिनका आदेश निकल चुका है उन्हें भी भारमुक्त न करना, पूरी प्रणाली पर सवाल खड़े करता है।

जिले के जानकारों का कहना है कि ऐसे मामलों में उच्चाधिकारियों को स्वतः संज्ञान लेकर जांच करनी चाहिए। यह भी जांच का विषय है कि स्थानांतरण आदेश के बावजूद कुछ कर्मचारियों को राहत क्यों नहीं दी जा रही है। क्या इनकी भूमिका इतनी महत्वपूर्ण है कि इनके बिना विभाग का काम ठप पड़ जाएगा, या फिर इनके पीछे किसी बड़े अधिकारी या राजनैतिक व्यक्ति का संरक्षण है?

इस पूरे मामले ने अब आम लोगों और कर्मचारियों में भी चर्चा छेड़ दी है। लोग सवाल पूछ रहे हैं कि जब साधारण कर्मचारी को छोटी-सी गलती पर इधर से उधर कर दिया जाता है, तो मलाईदार पदों पर वर्षों से जमे कर्मचारियों को क्यों संरक्षण मिलता है? क्या स्थानांतरण नीति सिर्फ कमजोरों और आम कर्मचारियों के लिए है?

अभी देखना यह होगा कि कोरिया जिले के जिम्मेदार अधिकारी इस मामले पर कब तक चुप्पी साधे रहते हैं, और क्या वाकई उन लिपिकों को उनके स्थान से हटाकर स्थानांतरण नीति का पालन करवाया जाएगा या फिर यह मामला भी फाइलों में दबकर रह जाएगा।

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