कोरिया। जिला मुख्यालय के विश्राम गृह के सामने कई दिनों से एक घायल गौवंश असहाय अवस्था में पड़ा हुआ है। स्थानीय लोगों की नजर इस पर पड़ी, लेकिन उचित इलाज और देखभाल के अभाव में यह बेजुबान पीड़ा झेल रहा था। इसी दौरान गौ-रक्षक अनुराग दुबे को इसकी जानकारी मिली। उन्होंने तुरंत सक्रियता दिखाते हुए पशु विभाग को फोन कर घायल गौवंश की सूचना दी और उसे उपचार दिलाने की पहल शुरू की। अनुराग दुबे लंबे समय से गौ-सेवा और समाजहित के कार्यों से जुड़े हुए हैं। उनका मानना है कि बेजुबानों की सेवा सबसे बड़ी मानवता है। घायल गौवंश की पीड़ा देखकर उन्होंने न केवल प्रशासन को जानकारी दी, बल्कि स्थानीय स्तर पर भी लोगों से अपील की कि ऐसे हालातों में मूक पशुओं की अनदेखी न करें, बल्कि मदद के लिए आगे आएं।
रोटी बैंक की पहल बनी पहचान
गौरतलब है कि अनुराग दुबे वही सामाजिक कार्यकर्ता हैं जिन्होंने सबसे पहले कोरिया जिले में रोटी बैंक की शुरुआत कराई थी। रोटी बैंक की सोच बहुत ही सरल लेकिन समाज के लिए बेहद प्रभावशाली रही। इसके तहत घरों में बची हुई साफ-सुथरी रोटियां और अन्य खाद्य सामग्री इकट्ठा कर बेसहारा, भूखे लोगों और पशुओं तक पहुँचाई जाती है।
कोरिया जिले से शुरू हुई इस अनोखी पहल ने धीरे-धीरे राज्यभर में पहचान बनाई और आज छत्तीसगढ़ के कई जिलों में रोटी बैंक संचालित हो रही है। इस अभियान ने न केवल भूख से जूझ रहे जरूरतमंदों को राहत दी है, बल्कि समाज में सेवा और दया की भावना को भी मजबूती प्रदान की है।
घायल गौवंश के इलाज की जिम्मेदारी
विश्राम गृह के पास घायल गौवंश की स्थिति देखकर अनुराग दुबे ने पशु चिकित्सा विभाग से तत्काल इलाज की मांग की। उनका कहना है कि शहर और गांवों में आए दिन कई पशु सड़क हादसों का शिकार हो जाते हैं। ऐसे में यदि समय रहते उन्हें इलाज मिले तो उनकी जान बचाई जा सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रशासन और समाज दोनों को मिलकर इस दिशा में काम करने की आवश्यकता है।
समाजसेवा में अग्रणी
अनुराग दुबे की छवि एक जुझारू समाजसेवी की रही है। गौ-सेवा के अलावा उन्होंने गरीबों, असहायों और जरूरतमंदों के लिए कई बार राहत अभियान चलाए हैं। विशेषकर कोरोना काल में उन्होंने रोटी बैंक के माध्यम से हजारों लोगों तक भोजन पहुँचाया था।
अपील
अनुराग दुबे का कहना है कि –
"पशु केवल सहानुभूति नहीं, बल्कि संवेदनशील देखभाल के हकदार हैं। यदि हर नागरिक एक छोटी जिम्मेदारी निभाए तो सड़क पर भूखे या घायल किसी भी पशु को तकलीफ नहीं झेलनी पड़ेगी।"
निष्कर्ष
जिला मुख्यालय में घायल गौवंश की घटना ने एक बार फिर यह संदेश दिया है कि समाज में दया और सहयोग की भावना कितनी जरूरी है। अनुराग दुबे जैसे गौ-रक्षक और समाजसेवी न केवल बेजुबानों की आवाज बनते हैं, बल्कि आम जनता के लिए भी प्रेरणा का स्रोत हैं।
उनकी रोटी बैंक जैसी पहल को अब छत्तीसगढ़ राज्यभर में अपनाया जा रहा है, जो इस बात का प्रमाण है कि एक छोटी सोच भी बड़े बदलाव की नींव रख सकती है।
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