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रक्तदान: मानवता की सबसे बड़ी सेवा, शहर के व्यवसायी सद्दाम कुरैशी बने मिसाल

 


कोरिया। “रक्तदान महादान है” – यह वाक्य हर बार सुनने में आता है, लेकिन जब कोई वास्तव में अपनी इच्छा से, बिना किसी दिखावे और बिना किसी मजबूरी के रक्तदान करता है, तब इस वाक्य का वास्तविक अर्थ समाज के सामने उजागर होता है। ऐसा ही एक प्रेरणादायी उदाहरण सोमवार को जिला चिकित्सालय कोरिया में देखने को मिला, जब शहर के व्यवसायी सद्दाम कुरैशी रक्तदान करने पहुंचे।

सद्दाम कुरैशी ने बताया कि उन्हें रक्तदान करते हुए कभी ऐसा नहीं लगता कि वे अस्पताल जैसे किसी औपचारिक माहौल में आए हैं। “मैं समय-समय पर रक्तदान करता हूँ और जरूरतमंदों की मदद करने का प्रयास करता हूँ। अचानक मेरे मन में विचार आया कि मुझे रक्तदान किए हुए छह माह बीत चुके हैं। मैंने निश्चय किया कि इस बार जिला चिकित्सालय चलकर रक्तदान करूँ और यहां की व्यवस्था को करीब से देखूँ।”

“ऐसा लगा ही नहीं कि अस्पताल में हूँ”

सद्दाम ने मुस्कुराते हुए बताया कि जिला चिकित्सालय में इस बार रक्तदान का अनुभव पहले से कहीं अधिक सुखद और प्रेरणादायी रहा। उन्होंने कहा – “मुझे आश्चर्य हुआ कि रक्तदान करते समय न तो कोई असुविधा हुई और न ही किसी तरह की परेशानी। महिला और पुरुष दोनों कर्मचारी बहुत सहयोगी और उत्साहवर्धक थे। उन्होंने जिस आत्मीयता से बात की, उससे मन में उमंग और उत्साह पैदा हुआ। मुझे तो ऐसा लगा ही नहीं कि मैं अस्पताल में रक्तदान कर रहा हूँ, बल्कि ऐसा लगा जैसे किसी परिवार का हिस्सा हूँ।”

रक्तदान के बाद भी कोई थकान नहीं

अक्सर लोगों के मन में यह भ्रांति रहती है कि रक्तदान के बाद कमजोरी आती है या फिर कई दिनों तक थकान महसूस होती है। लेकिन सद्दाम कुरैशी ने इस भ्रांति को भी तोड़ा। उन्होंने कहा कि रक्तदान करने के बाद भी वे पहले जैसे ही ताजगी महसूस कर रहे हैं। “यह केवल एक सेवा ही नहीं, बल्कि आत्मिक शांति और संतोष देने वाला कार्य है। रक्तदान से किसी की जान बच सकती है और इससे बड़ा पुण्य कार्य शायद ही कोई और हो।”

युवा वर्ग के लिए प्रेरणा

जिला चिकित्सालय में मौजूद अन्य लोगों ने भी सद्दाम कुरैशी की इस पहल की सराहना की। उनका मानना है कि समाज में आज के दौर में जहां लोग व्यस्तता और व्यक्तिगत हितों में उलझकर समाजसेवा से दूरी बना रहे हैं, वहीं ऐसे उदाहरण युवाओं को रक्तदान के लिए प्रेरित करते हैं।

स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों का भी कहना था कि आज के समय में स्वेच्छा से रक्तदान करने वाले लोग ही असली हीरो हैं। क्योंकि अक्सर रक्तदान तभी किया जाता है जब किसी अपने को जरूरत पड़ती है, लेकिन बिना किसी दबाव और अपनी मर्जी से रक्तदान करना वाकई प्रशंसनीय है।

समाज के नाम संदेश

सद्दाम कुरैशी ने अंत में समाज के सभी लोगों से अपील की कि वे रक्तदान को बोझ या डर की तरह न देखें, बल्कि इसे मानवता की सेवा समझकर नियमित रूप से करें। उन्होंने कहा –

“हमारी नसों में बहने वाला यह रक्त किसी की जिंदगी बचाने के काम आए, इससे बड़ी खुशी और गर्व की बात और क्या होगी। मैं चाहता हूँ कि हर स्वस्थ नागरिक साल में कम से कम दो बार रक्तदान अवश्य करे। यही हमारी असली देशभक्ति और समाजसेवा होगी।”

सराहनीय व्यवस्था

इस अवसर पर मौजूद चिकित्सालय के कर्मचारियों ने भी रक्तदान की व्यवस्था को व्यवस्थित और सरल बनाए रखा। साफ-सुथरे माहौल, समय पर सहयोग और प्रेरणादायी शब्दों ने रक्तदाता के अंदर आत्मविश्वास भरा। यह व्यवस्था वाकई सराहनीय थी और अन्य अस्पतालों के लिए भी एक उदाहरण है।

निष्कर्ष

शहर के व्यवसायी सद्दाम कुरैशी ने यह साबित कर दिया कि रक्तदान केवल जरूरत के समय नहीं, बल्कि स्वेच्छा से भी किया जा सकता है। उनकी यह पहल निश्चित रूप से समाज के लिए प्रेरणा है। यदि हर नागरिक इस सोच को अपनाए तो रक्त की कमी से किसी भी मरीज की जान कभी नहीं जाएगी।

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