सूरजपुर। मामला जब-तक समाचारों की सुर्खियों में शामिल ना हो तब तक जवाबदेह अफसरों की लापरवाही पर कोई सख्ती नहीं बरतने की पुरानी परंपरा ने सूरजपुर जिले में एक दफा फिर से मानवीय संवेदना को शर्मशार करने के साथ ही शासकीय स्वास्थ्य विभाग की पोल खोल कर रख दी है,हम बात कर रहे हैं बीते दिनों भटगांव सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में मानवता को शर्मसार करने वाली घटना को लेकर जिसने सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी। एक गर्भवती मां को असहनीय दर्द में ठंडे फर्श पर अपने नवजात को जन्म देना पड़ा, क्योंकि न डॉक्टर मौजूद था, न नर्स। पांच घंटे तक तड़पती रही मां, मगर मदद के नाम पर सिर्फ सन्नाटा। घटना के बाद पहुंचे डॉक्टर ने औपचारिकता निभाते हुए मां-बच्चे को जिला अस्पताल रेफर कर दिया। यह लापरवाही न केवल स्वास्थ्य तंत्र की नाकामी उजागर करती है, बल्कि ग्रामीण भारत में मातृत्व की पीड़ा को और गहरा करती है।
स्वास्थ्य मंत्री का वादा, फिर भी सवाल बरकरार
मामला तूल पकड़ने पर कुछ समाचार संस्थानों से चर्चा में इस मामले को लेकर स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने कहा है कि उन्होंने जांच के आदेश दिए हैं, वादा किया है कि दोषियों पर सख्त कार्रवाई होगी। लेकिन क्या यह आश्वासन उस मां की पीड़ा कम कर पाएगा...? क्या यह ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली को सुधारेगा...? जांच कमेटी गठित तो हुई, मगर ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए ठोस कदम कब उठेंगे...?
यह सिर्फ एक मां की कहानी नहीं, बल्कि उन लाखों ग्रामीण महिलाओं की त्रासदी है, जो संसाधनों और संवेदना के अभाव में हर दिन ऐसी अमानवीय स्थिति झेलने को मजबूर हैं। यह घटना हमें झकझोरती है—आखिर कब तक एक मां को फर्श पर तड़पकर अपने बच्चे को जन्म देना पड़ेगा...?
जवाबदेह तंत्र से सवाल क्या बदलेगी व्यवस्था...?
स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही और संसाधनों की कमी बार-बार मासूम जिंदगियों को खतरे में डाल रही है। जांच के वादे तो हो रहे हैं, लेकिन क्या यह त्रासदी दोहराने से रोक पाएंगे.....? समाज और व्यवस्था को कटघरे में खड़ा करती यह घटना अब सवाल पूछती है—कब आएगा वह दिन, जब हर मां को सुरक्षित मातृत्व का हक मिलेगा....?
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