कोरिया। छत्तीसगढ़ शासन की डिजिटल पंजीयन व्यवस्था को सरल, पारदर्शी और सुगम बनाने की महत्वाकांक्षी योजना कोरिया में नई उम्मीदों का सबब बनी थी, लेकिन भू-माफियाओं का दबदबा, साइबर धोखाधड़ी का बढ़ता खतरा और डिजिटल साक्षरता की कमी इस क्रांति को पंगु बनाने पर तुले हैं। आधार सत्यापन, स्वत: नामांतरण और दान-हकत्याग विलेखों पर ₹500 शुल्क जैसी तीन सेवाएं लागू हो चुकी हैं, जबकि मोबाइल-व्हाट्सएप जानकारी, पेपरलेस पंजीयन, डिजिलॉकर और घर बैठे रजिस्ट्री जैसी सात अत्याधुनिक सेवाएं अभी टेस्टिंग के दौर से गुजर रही हैं। 23 मार्च से 13 जून 2025 तक 290 विक्रय विलेखों का स्वत: नामांतरण पूरा हुआ, लेकिन पुराने भूमि रिकॉर्ड्स की गड़बड़ियां, सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाएं और तकनीकी अज्ञानता इस पहल को ग्रामीणों तक पहुंचने से रोक रही हैं। वहीं दूसरी तरफ जानकारों का मानना है कि बिना डिजिटल साक्षरता, पुराने रिकॉर्ड्स के सुधार, कर्मचारी प्रशिक्षण और जागरूकता अभियानों के यह क्रांति अधूरी रहेगी। शासन को चाहिए कि ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष शिविर लगाकर पुराने रिकॉर्ड्स का डिजिटाइजेशन और सुधार करे, साइबर सुरक्षा के लिए जागरूकता अभियान चलाए, और कर्मचारियों को तकनीकी प्रशिक्षण दे। तभी यह डिजिटल क्रांति कोरिया के ग्रामीणों के लिए सच्चा वरदान बन पाएगी, वरना यह महज कागजी दावों तक सिमटकर रह जाएगी।
डिजिटल साक्षरता का संकट, दलालों का राज
कोरिया के ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश लोग भुइयां सॉफ्टवेयर, ऑनलाइन रजिस्ट्री पोर्टल और डिजिटल उपकरणों से अनजान हैं। जागरूकता अभियानों की कमी ने स्थिति को और पेचीदा बना दिया है, जिसके चलते लोग पुरानी मैनुअल प्रक्रिया पर निर्भर हैं। इस अज्ञानता का फायदा उठाकर दलाल ग्रामीणों से मोटी रकम वसूल रहे हैं, और ऑनलाइन प्रक्रियाओं में उनकी भूमिका बढ़ती जा रही है। पुराने जमाबंदी, खसरा, खतौनी और नामांतरण रिकॉर्ड्स के अपडेट न होने से डिजिटल मिलान में भारी दिक्कतें आ रही हैं। कई गांवों में दशकों पुराने रजिस्ट्री आधारित आपसी भरोसे की जमीनों का नामांतरण आज तक नहीं हुआ, और प्रशासन ने ऐसे मामलों के लिए न तो विशेष शिविर लगाए, न ही कोई ठोस पहल की।
भू-माफियाओं का जाल, विवादों की आग
पुराने दस्तावेजों के डिजिटाइजेशन में देरी और रिकॉर्ड्स की त्रुटियों का फायदा भू-माफिया बखूबी उठा रहे हैं। गलत दस्तावेजों के सहारे काबिज व्यक्तियों की जमीन को दूसरों के नाम बेचने के मामले बढ़ रहे हैं, जिससे स्वत: नामांतरण और रजिस्ट्री प्रक्रिया नए विवादों को जन्म दे रही है। ग्रामीणों का कहना है कि बिना पुराने रिकॉर्ड्स के सुधार और सख्त निगरानी के यह डिजिटल व्यवस्था भू-माफियाओं के लिए वरदान साबित हो रही है।
ठगी का बढ़ता साया
आधार लिंकिंग और ऑनलाइन सत्यापन जैसी प्रक्रियाओं ने साइबर धोखाधड़ी का जोखिम कई गुना बढ़ा दिया है। तकनीक से अनजान ग्रामीण फर्जी वेबसाइट्स, धोखेबाज एजेंट्स और जाली दस्तावेजों का आसान शिकार बन रहे हैं। जिला प्रशासन के दावों के बावजूद, साइबर सुरक्षा के लिए कोई ठोस जागरूकता अभियान या प्रशिक्षण कार्यक्रम नहीं चलाया गया, जिससे ग्रामीणों का भरोसा डगमगा रहा है।
लंबित मामलों का बोझ, कर्मचारियों की कमी
स्थानीय तहसीलों और रजिस्ट्री कार्यालयों में नामांतरण और रजिस्ट्री के लंबित मामलों का अंबार लगा है। स्वत: नामांतरण जैसी नई प्रणाली लागू होने के बावजूद, पुराने मामलों के निपटारे में देरी और अव्यवस्था से ग्रामीण परेशान हैं। तहसीलदारों, पटवारी और अन्य कर्मचारियों को नई डिजिटल प्रक्रिया का पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं मिला, जिसके कारण गलत जानकारी दर्ज होने और प्रक्रिया में देरी की शिकायतें आम हैं। कर्मचारियों की कमी से कार्यालयों में भीड़ और अराजकता का आलम है, जो इस क्रांति की राह में एक और बड़ा रोड़ा है।
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