सूरजपुर। राजस्व विभाग का एक सनसनीखेज कारनामा फिर से चर्चा में है, जो न केवल प्रशासनिक पारदर्शिता को कटघरे में खड़ा करता है, बल्कि आम जनता के विश्वास को भी ठेस पहुंचाता है। प्रतापपुर तहसील के मदननगर में पांच शासकीय भूमियों को निजी व्यक्तियों के नाम दर्ज करने के गंभीर अपराध में निलंबित पटवारी मो. नुरुल हसन अंसारी को न सिर्फ महज दो माह में बहाल कर दिया गया, बल्कि उसी मदननगर की जिम्मेदारी फिर से सौंपकर विभाग ने अपने ही नियमों की धज्जियां उड़ा दीं। यह प्रकरण राजस्व विभाग की कार्यशैली और जिला प्रशासन की जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
मोटी रकम के बदले शासकीय भूमि की लूट
वर्ष 2021 में पटवारी मो. नुरुल हसन अंसारी ने मदननगर की खसरा क्रमांक 795, 811, 1143, 1154/1 और 1156 की शासकीय भूमियों को मोटी रकम के एवज में निजी व्यक्तियों के नाम पर दर्ज कर दिया। शिकायत पर तत्कालीन एसडीएम प्रतापपुर दीपिका नेताम ने जांच के बाद 26 जुलाई 2021 को पटवारी को निलंबित किया। निलंबन आदेश में स्पष्ट था कि पटवारी ने नियम-विरुद्ध तरीके से शासकीय संपत्ति को निजी हाथों में सौंपा, जो छत्तीसगढ़ सिविल सेवा नियमों के तहत संगीन अपराध है। साक्ष्य आधारित इस कार्रवाई से लगा था कि दोषी को कठोर सजा मिलेगी, लेकिन हुआ इसका उलट।
दो माह में बहाली, नियमों का मखौल
निलंबन के मात्र दो माह बाद 30 सितंबर 2021 को तत्कालीन एसडीएम ने अपने ही आदेश को पलटते हुए पटवारी की बहाली का आदेश जारी कर दिया। बहाली आदेश में दावा किया गया कि पटवारी ने आरोप पत्र का जवाब दे दिया, जिसके आधार पर उन्हें बहाल किया गया। हैरानी की बात यह कि निलंबन काल को भी कार्यावधि मान लिया गया। सवाल उठता है कि इतने गंभीर अपराध के बावजूद बिना किसी आपराधिक कार्रवाई, बर्खास्तगी या जुर्माने के कैसे एक पटवारी को क्लीन चिट दे दी गई....? यह राजस्व विभाग की कार्यप्रणाली पर बड़ा प्रश्नचिह्न है।
फर्जीवाड़े के दोषी को फिर वही जिम्मेदारी
और भी चौंकाने वाला तथ्य यह है कि शासकीय भूमियों की लूट में शामिल इस पटवारी को वर्तमान में फिर से मदननगर का कार्यभार सौंप दिया गया। यह वही क्षेत्र है, जहां एसईसीएल भटगांव क्षेत्र द्वारा कोयला खदान खोलने का ग्रामीण पुरजोर विरोध कर रहे हैं। ऐसे संवेदनशील क्षेत्र में उसी पटवारी को जिम्मेदारी देना न केवल लापरवाही है, बल्कि यह संदेश भी देता है कि अपराध करने वालों को संरक्षण मिलेगा। यह फैसला ग्रामीणों के आक्रोश को और भड़का सकता है।
कानून की खुली अवहेलना
जब यह फर्जीवाड़ा हुआ, तब भारतीय दंड संहिता लागू थी, और अब भारतीय न्याय संहिता प्रभावी है। दोनों ही कानूनों में शासकीय सेवक द्वारा फर्जीवाड़े के लिए कठोर सजा का प्रावधान है, जिसमें आपराधिक मामला, बर्खास्तगी और जुर्माना शामिल है। लेकिन इस मामले में न तो कोई आपराधिक केस दर्ज हुआ और न ही कोई सख्त कार्रवाई हुई। उलटे, दोषी को फिर से वही जिम्मेदारी सौंपकर विभाग ने कानून का मखौल उड़ाया।
कलेक्टर के निर्देश हवा में
जिला कलेक्टर नियमित बैठकों में पारदर्शी और जवाबदेह कार्यशैली के निर्देश देते हैं, लेकिन यह प्रकरण साबित करता है कि उनके मातहत अधिकारी इन निर्देशों को गंभीरता से नहीं लेते। आरटीआई कार्यकर्ता दीपक चंद मित्तल द्वारा प्राप्त जानकारी ने इस घोटाले को उजागर किया, जिसने प्रशासन की पोल खोल दी।
ग्रामीणों में आक्रोश, विश्वास पर चोट
मदननगर के ग्रामीण पहले ही कोयला खदान के मुद्दे पर आंदोलनरत हैं। ऐसे में उसी पटवारी को जिम्मेदारी सौंपना, जिसने शासकीय भूमियों में फर्जीवाड़ा किया, ग्रामीणों के गुस्से को और हवा दे सकता है। यह घटनाक्रम न केवल राजस्व विभाग की साख को धूमिल करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि गंभीर अपराधों के बावजूद दोषियों को संरक्षण देने की प्रवृत्ति कायम है।
सख्त कार्रवाई की मांग
यह प्रकरण जिला प्रशासन के लिए एक गंभीर चुनौती है। यदि शासकीय भूमियों की लूट जैसे संगीन अपराध में शामिल लोगों को सजा के बजाय पुरस्कार मिलेगा, तो जनता का प्रशासन पर भरोसा कैसे बचेगा? इस मामले की उच्च स्तरीय जांच और दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की मांग अब तेज हो रही है। ग्रामीणों और जनता की निगाहें अब प्रशासन के अगले कदम पर टिकी हैं।
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