सूरजपुर। जिला पंचायत सूरजपुर के डाटा सेंटर में लगी आग अब बुझ चुकी है, लेकिन उससे उठे सवाल अभी भी धधक रहे हैं। दरअसल घटना के दो दिन बाद जिला प्रशासन ने अधिकृत बयान जारी कर दावा किया कि आगजनी शॉर्ट सर्किट से हुई थी और कोई षड्यंत्र नहीं था। साथ ही, सभी अभिलेख सुरक्षित बताए गए हैं। प्रशासन ने कहा कि कार्यालय में पर्याप्त अग्निशामक यंत्र थे और नगर सेना की तत्परता से आग पर नियंत्रण पा लिया गया। इसके जांच के लिए गठित कमेटी के रिपोर्ट का हवाला देकर , सभी अभिलेख सुरक्षित बताए गए हैं। प्रसारित खबरों में लग रहे साजिश के आरोपों को भी सिरे से खारिज कर दिया गया।। बहरहाल जानकारी सार्वजनिक होने पर सामने आ रही बातों गौर करें तो "सिर्फ आग बुझाने व खंडन जारी करने से जिम्मेदारी खत्म नहीं होती, विश्वास की चिंगारी जलाए बिना पारदर्शिता की रोशनी नहीं फैलती। सवाल अब सिर्फ आग के नहीं हैं, व्यवस्था के चरित्र पर उठे हैं — जवाब वक्त देगा या फिर वक्त खुद सवाल बन जाएगा।"
लेकिन जनचर्चा कुछ और कहानी कह रही है...
आगजनी के तुरंत बाद जिला प्रशासन की चुप्पी, जांच समिति में विशेषज्ञों की संभावित कमी और जिला पंचायत सीईओ की खामोशी ने संदेह की आग को और हवा दी है। यदि सब कुछ पारदर्शी था, तो फायर सेफ्टी से जुड़े विशेषज्ञों की टीम क्यों नहीं बनाई गई..? जवाबदेही भरे बयानों से दूरी क्यों बनाई गई?
अतीत की परछाई भी हावी
यह वही जिला पंचायत है, जहां पहले के कई मामलों की जांच फाइलों में धूल फांक रही है। ऐसे में डाटा सेंटर कांड में दिखाई गई अचानक सक्रियता पर सवाल उठना लाजिमी है। क्या हर मामले में इसी तेजी से कार्रवाई होगी या फिर यह जोश कुछ दिन बाद ठंडा पड़ जाएगा?
भरोसा चाहिए या बहाने
जनता का साफ सवाल है — यदि सब कुछ सही है तो क्यों नहीं हर मामले में ऐसी तत्परता दिखाई जाती...? क्यों बार-बार जांचें लंबित रहती हैं और जवाबदेही से बचा जाता है? अगर इस बार की तत्परता आदत बन जाए तो जनविश्वास भी लौटेगा, वरना एक और "आग" भविष्य में जिला पंचायत को घेर सकती है — इस बार फाइलों में नहीं, जनता के भरोसे में।
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