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जिला मुख्यालय में फ्री होल्ड घोटाला: जन्म से पहले ही सरकारी भूमि पर कब्जा दिखाकर कराया गया फ्री होल्ड, जिम्मेदारों की भूमिका पर सवाल

 


कोरिया। जिला मुख्यालय में प्रशासनिक लापरवाही और अनियमितताओं का एक बड़ा मामला सामने आया है, जिसने शासन-प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार, एक महिला के नाम पर शासकीय भूमि को फर्जी तरीके से फ्री होल्ड करा लिया गया है। चौंकाने वाली बात यह है कि संबंधित भूमि पर वर्ष 1980 से कब्जा बताया गया है, जबकि उक्त महिला का जन्म ही कई वर्षों बाद हुआ था। यह खुलासा प्रशासनिक तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार और दोहरी नीति की ओर संकेत करता है। सूत्रों के अनुसार, जिस महिला के नाम फ्री होल्ड किया गया, वह मूल रूप से बिहार की निवासी रही हैं और वर्ष 2017-18 के आसपास ही बैकुंठपुर आई थीं। इसके बावजूद, दस्तावेजों में 1980 से कब्जा दर्ज किया गया है। जब इस भूमि के पुराने रिकॉर्ड की जांच की गई तो पाया गया कि 1980 से लेकर वर्तमान समय तक किसी के कब्जे का कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। बावजूद इसके, फ्री होल्ड प्रक्रिया के दौरान कई अधिकारियों और कर्मचारियों ने यह प्रमाणित कर दिया कि उक्त भूमि पर 1980 से कब्जा है। यह तथ्य प्रशासनिक मिलीभगत की ओर इशारा करता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि जब भी कोई गरीब व्यक्ति या कमजोर वर्ग का नागरिक शासकीय भूमि पर अस्थायी कब्जा कर लेता है, तो प्रशासन तत्काल कार्रवाई करते हुए अतिक्रमण हटाने में देर नहीं करता। वहीं, जब किसी प्रभावशाली व्यक्ति या आर्थिक रूप से सशक्त वर्ग द्वारा सरकारी भूमि पर कब्जा किया जाता है, तो प्रशासन या तो आंख मूंद लेता है या नियमों को ताक पर रखकर उसे वैध ठहराने में मदद करता है। यही प्रशासन की दोहरी नीति जनता के बीच आक्रोश का कारण बन रही है। इस प्रकरण ने जिला प्रशासन की जांच टीम की विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिह्न लगा दिया है। सूत्र बताते हैं कि जांच में शामिल कुछ अधिकारियों ने बिना सत्यापन के दस्तावेजों को प्रमाणित किया, जिससे फ्री होल्ड प्रक्रिया पूरी हो गई। अब सवाल यह उठता है कि जब संबंधित व्यक्ति का जन्म ही 1980 के बाद हुआ, तो वह कैसे उस समय भूमि पर कब्जा कर सकता था? यह तथ्य अपने आप में प्रशासनिक धांधली का स्पष्ट उदाहरण है। जनता की मांग है कि इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए और दोषी अधिकारियों एवं कर्मचारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए। साथ ही, शासकीय भूमि को तत्काल प्रभाव से पुनः शासन के अधिकार में लिया जाए। यदि ऐसे मामलों पर सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो प्रशासनिक विश्वसनीयता पर से जनता का भरोसा पूरी तरह उठ जाएगा। यह मामला न केवल सरकारी भूमि हड़पने का है, बल्कि यह एक ऐसे सिस्टम की पोल खोलता है, जहाँ पद, पैसा और प्रभाव के बल पर कानून को तोड़ा-मरोड़ा जा सकता है। अब देखना यह है कि जिला प्रशासन इस गंभीर प्रकरण पर क्या रुख अपनाता है — पारदर्शिता का या फिर एक बार फिर पर्दादारी का।

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