Ticker

6/recent/ticker-posts

अधूरे पड़े आवास, बढ़ती महंगाई का दंश: अनुदान अपर्याप्त, गरीबों का घर बनाने का सपना अधूरा


सूरजपुर। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत जिले में गरीबों के लिए बनाए जा रहे कई आवास अधूरे पड़े हैं। इसके पीछे एक बड़ा कारण बतौर शासन से मिलने वाली अनुदान राशि की तुलना में बढ़ती महंगाई ने नाकाफी बना दिया है। निर्माण सामग्री की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि ने गरीबों के घर बनाने के सपने को और मुश्किल बना दिया है। जानकारी के अनुसार, प्रधानमंत्री शहरी और ग्रामीण आवास योजना की शुरुआत वर्ष 2016-17 में हुई थी। जिला पंचायत सूत्रों के मुताबिक, ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्या में आवास अधूरे हैं या उनका निर्माण शुरू ही नहीं हुआ। शहरी क्षेत्रों में यह संख्या तुलनात्मक रूप से कम है। वर्ष 2016 से 2024-25 तक शहरी क्षेत्रों में करीब 2.50 लाख रुपये और ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 1.20 लाख रुपये अनुदान के साथ-साथ मनरेगा के तहत 90 दिवस की मजदूरी का प्रावधान है लेकिन शुरूआती दौर के बाद लगातार गुजरते वर्ष के साथ ही सीमेंट, छड़, रेत और गिट्टी जैसी निर्माण सामग्री की कीमतें आसमान छू रही हैं, जिससे अनुदान राशि नाकाफी साबित हो रही है।कुलमिलाकर जिले में सैकड़ों अधूरे आवास और बढ़ती महंगाई के बीच सवाल यह है कि गरीबों का अपना घर बनाने का सपना कैसे पूरा होगा...? जानकारों की मानें तो सरकार को अनुदान राशि बढ़ाने और महंगाई के अनुरूप योजना को पुनर्गठित करने की आवश्यकता है। जब तक ठोस कदम नहीं उठाए जाते, गरीबों का घर का सपना अधूरा ही रहेगा। वहीं दूसरी तरफ शासन की तरफ से पंचायत कर्मियों पर लगातार अपूर्ण आवासों को पूर्ण करने का बढ़ता दवाब और दूसरी तरफ महंगाई के आगे लाचार हितग्राही व पंचायत कर्मियों दोनों परेशान व हलकान पड़े हुए हैं।

महंगाई की मार, अनुदान में कटौती

सूत्रों की मानें तो तकरीबन वर्ष 2024 में प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना के तहत अनुदान राशि को करीब 1.30 लाख से घटाकर 1.20 लाख रुपये कर दिया गया है। इसके अतिरिक्त 90 दिवस मजदूरी मनरेगा मजदूरी और 12,000 रुपये शौचालय निर्माण के लिए अलग से दिए जा रहे हैं। लेकिन, 18% जीएसटी और बढ़ती लागत के बीच यह राशि मकान निर्माण के लिए अपर्याप्त है। 

निर्माण सामग्री की कीमतों में उछाल

पिछले नौ वर्षों में निर्माण सामग्री की कीमतों में भारी वृद्धि हुई है। वर्ष 2016 में सीमेंट की बोरी 225 रुपये में मिलती थी, जो अब 340-350 रुपये की है। छड़ का दाम 40 रुपये प्रति किलो से बढ़कर 53-55 रुपये हो गया है। रेत की ट्रॉली 500 रुपये से 2,000 रुपये और गिट्टी 1500 रुपये से 3,500 रुपये तक पहुंच गई है। 

गरीबों के सपनों पर संकट

बढ़ती कीमतों और घटते अनुदान ने गरीबों के लिए मकान निर्माण को और चुनौतीपूर्ण बना दिया है। इसके साथ ही पहचान जाहिर नहीं करने की शर्त पर पंचायत से जुड़े कर्मीयों ने बताया कि कई लाभार्थी अनुदान राशि के भरोसे निर्माण शुरू करते हैं, लेकिन लागत बढ़ने के कारण काम अधूरा छोड़ देते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में यह समस्या अधिक गंभीर है। वहीं दूसरी तरफ जिला स्तर से अधूरे पड़े आवासों को पूर्ण कराने का दवाब बनाया जाता है लेकिन ऐसे आलम में ऐसे आवासों को पूर्ण कराना एक बड़ी चुनौती बतौर जनपद से लेकर पंचायत स्तर के कर्मीयों बनकर उभरी है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ