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स्थानांतरण के कुछ घंटे बाद ही पटवारी को किया गया भारमुक्त - कोरिया जिले में पहली बार बिना प्रभार हस्तांतरण के हुआ ऐसा मामला

 


कोरिया। जिले में प्रशासनिक कार्यशैली को लेकर एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है। यहाँ एक पटवारी को स्थानांतरण आदेश जारी होने के कुछ ही घंटे बाद अचानक भारमुक्त कर दिया गया। बताया जा रहा है कि यह मामला कोरिया जिले के इतिहास में पहली बार हुआ है, जब किसी पटवारी को बिना प्रभार सौंपे ही भारमुक्त कर दिया गया हो। सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया के अनुसार किसी भी स्थानांतरण के बाद संबंधित अधिकारी या कर्मचारी को कम से कम सात दिनों का समय दिया जाता है, ताकि वह अपने कार्यक्षेत्र से जुड़े समस्त अभिलेख, राजस्व रिकार्ड, खतौनी, नक्शा, फर्द एवं अन्य दस्तावेज नियमानुसार नए पटवारी को हस्तांतरित कर सके।


लेकिन इस बार प्रक्रिया को दरकिनार करते हुए पटवारी को मात्र कुछ घंटों के भीतर ही तत्काल प्रभाव से भारमुक्त कर दिया गया। सूत्रों के अनुसार संबंधित पटवारी का 22 अक्टूबर 2025 को स्थानांतरण आदेश जारी हुआ था और उसी दिन शाम तक उन्हें भारमुक्त भी कर दिया गया, जबकि नियमानुसार स्थानांतरण के बाद हस्तांतरण की प्रक्रिया पूर्ण होने में एक सप्ताह का समय दिया जाता है।


इस निर्णय से विभागीय कर्मचारियों में भी आश्चर्य और नाराज़गी देखी जा रही है। कुछ कर्मचारियों का कहना है कि यदि इस प्रकार बिना हस्तांतरण प्रक्रिया के ही भारमुक्त किया जाने लगा, तो राजस्व अभिलेखों में गड़बड़ी और अनियमितता की संभावना बढ़ जाएगी। वहीं कई ग्रामीणों का कहना है कि पटवारी के अचानक भारमुक्त हो जाने से अब राजस्व से जुड़े कार्य, जैसे नामांतरण, सीमांकन, फर्द और खतौनी का काम लंबित पड़ सकता है जानकारी के अनुसार संबंधित क्षेत्र में पहले से ही भू-अभिलेखों को लेकर विवाद चल रहा था। वहीं यह भी चर्चा है कि स्थानांतरण के पीछे कुछ स्थानीय प्रभावशाली लोगों की भूमिका रही है, जिन्होंने अपने हितों के चलते अधिकारी पर दबाव बनाया। राजस्व विभाग के जानकारों का कहना है कि नियम 7(4) के तहत स्थानांतरण के बाद कार्यभार हस्तांतरण की प्रक्रिया पूर्ण होने तक संबंधित कर्मचारी को नियमित रूप से अपने पद का दायित्व निभाना होता है। ऐसे में कोरिया जिले में यह पहली बार हुआ है कि नियमों की अनदेखी करते हुए तत्काल भारमुक्ति का आदेश जारी कर दिया गया। इस पूरे मामले ने राजस्व विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। अब देखना यह होगा कि उच्च अधिकारी इस प्रकरण की जांच करवाते हैं या नहीं, ताकि भविष्य में इस तरह की प्रशासनिक चूक दोबारा न हो।

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