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थाईलैंड यात्रा पर सवाल: सहायक आयुक्त कार्यालय का लिपिक दया साहू अनुमति लेकर गए या बिना स्वीकृति? - सुत्र

 


कोरिया। सहायक आयुक्त आदिवासी विकास विभाग, बैकुण्ठपुर में पदस्थ लिपिक दया साहू इन दिनों चर्चाओं में हैं। बताया जा रहा है कि वे हाल ही में थाईलैंड यात्रा पर गए थे, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि उन्होंने इसके लिए विभागीय अनुमति ली थी या नहीं। यह मामला अब संदेह के घेरे में आ गया है। सूत्रों के अनुसार, विभागीय कर्मचारियों को देश से बाहर यात्रा करने से पूर्व शासन की अनुमति अनिवार्य होती है। छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (आचरण) नियम 1965 के तहत कोई भी शासकीय कर्मचारी विदेश यात्रा तभी कर सकता है जब उसे संबंधित विभाग या शासन स्तर से लिखित अनुमति प्राप्त हो। इस नियम के अनुसार, कर्मचारी को अपने आवेदन में यात्रा का उद्देश्य, खर्च का स्रोत और अवधि का पूरा विवरण देना होता है। अनुमति के बिना विदेश यात्रा करना अनुशासनहीनता की श्रेणी में आता है, जिस पर विभागीय कार्रवाई की जा सकती है गौरतलब है कि दया साहू के संबंध में पहले भी समाचार प्रकाशित हो चुके हैं, लेकिन अब तक विभागीय स्तर पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं की गई है। बताया जा रहा है कि उनके खिलाफ विभाग के अंदर ही कई शिकायतें लंबित हैं, फिर भी वे लगातार सक्रिय पद पर बने हुए हैं। सूत्रों का यह भी कहना है कि दया साहू ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए बैकुण्ठपुर क्षेत्र में लाखों रुपये की भूमि खरीदी है। अब सवाल यह उठता है कि क्या इस खरीदारी के लिए विभागीय अनुमति ली गई थी या नहीं। यदि अनुमति नहीं ली गई, तो यह भी नियम विरुद्ध कार्यवाही की श्रेणी में आता है। विभागीय सूत्रों के अनुसार, इन दिनों कोरिया जिले में चतुर्थ वर्ग कर्मचारियों पर दबाव बनाकर एल.आई. (लोक निरीक्षक) जैसे कार्य कराए जा रहे हैं, जो कि नियमों के खिलाफ है। यह भी विभागीय प्रणाली की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाता है। अब देखना यह होगा कि आदिवासी विकास विभाग के वरिष्ठ अधिकारी इस मामले को कितनी गंभीरता से लेते हैं। क्या बिना अनुमति विदेश यात्रा और संदिग्ध भूमि खरीदी के मामले में जांच की जाएगी या यह मुद्दा एक बार फिर ठंडे बस्ते में चला जाएगा? जनता यह जानने को उत्सुक है कि आखिर सहायक आयुक्त कार्यालय का लिपिक दया साहू किसकी अनुमति से थाईलैंड पहुंचे और क्या शासन के नियमों का पालन वास्तव में हुआ या नहीं।

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