कोरिया। जब कलम बिक जाए तो खबरें रेंगती हैं, और जब कलम जाग जाए तो सत्ता और अपराधी दोनों कांपते हैं। असली पत्रकारिता और चाटुकारिता में फर्क सिर्फ साहस, ईमानदारी और संविधान के अधिकार का है।
स्वतंत्र पत्रकार- संपादकीय
पत्रकारिता का धर्म है – सच बोलना, सच दिखाना और सच लिखना। लेकिन आज मीडिया के कुछ हिस्सों में “चाटुकारिता” नाम का वायरस घुस चुका है, जहाँ खबरें सच के बजाय ताकतवरों की खुशामद में रंगी होती हैं। ऐसे चाटुकार सत्ता और अपराधियों के सामने झुकते हैं, और अपनी कलम को सौदेबाजी का औजार बना लेते हैं।
इसके उलट, स्वतंत्र पत्रकार किसी का दलाल नहीं होता। उसका एक ही एजेंडा होता है – जनता के सामने सच्चाई रखना, चाहे सामने मंत्री हो या माफिया।
संवैधानिक आधार
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) प्रत्येक नागरिक को वाणी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है, जिसमें स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता का अधिकार भी शामिल है। यह अधिकार पत्रकार को सच बोलने, लिखने और प्रकाशित करने की स्वतंत्रता देता है, बशर्ते वह अनुच्छेद 19(2) में दिए गए *यथोचित प्रतिबंधों* (राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, मानहानि आदि) के दायरे में रहे।
निष्पक्ष पत्रकार का खुला चैलेंज
ऐसे ही एक निष्पक्ष पत्रकार ने हाल ही में अवैध कारोबार करने वालों को खुला चैलेंज दिया है –
"अगर दम है तो सामने आकर सच का जवाब दो, न कि पीछे से डराने और खरीदने की कोशिश करो।"
यह चुनौती न सिर्फ व्यक्तिगत साहस का प्रतीक है, बल्कि उस लोकतांत्रिक पत्रकारिता का सबूत है जो किसी डर या लालच में नहीं झुकती। यह संदेश साफ है – चाटुकारिता के लिए जगह सिर्फ दलालों में है, पत्रकारिता में नहीं।
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