रायपुर। छत्तीसगढ़ कांग्रेस में आंतरिक नाराज़गी अब खुलकर सामने आने लगी है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर गंभीर आरोप लगाते हुए कांग्रेस के ही कुछ नेताओं और कार्यकर्ताओं ने कहा है कि उन्होंने पार्टी को निजी मंडली में बदल दिया और कांग्रेस की मूल ताकत—ज़मीनी कार्यकर्ताओं—को लगातार नज़रअंदाज़ किया।
सोमवार को आयोजित तथाकथित "आर्थिक नाकेबंदी" आंदोलन को लेकर पार्टी के अंदर ही सवाल खड़े हो रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक, यह प्रस्ताव बघेल के नज़दीकी दो नेताओं त्रिलोक ढिल्लन और के.के. श्रीवास्तव द्वारा रखा गया, जिससे भ्रम की स्थिति बनी और कई कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए। लेकिन राजनीतिक गलियारों में अब यह चर्चा ज़ोर पकड़ रही है कि यह आंदोलन पार्टी हित से ज़्यादा, व्यक्तिगत हित साधने के लिए किया गया था।
भूपेश बघेल पर लगाए गए आरोप
पार्टी के अंदर कई वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं ने यह सवाल उठाया है कि:
त्रिलोक ढिल्लन क्या कभी सक्रिय कांग्रेस कार्यकर्ता रहे हैं?
के.के. श्रीवास्तव का कांग्रेस भवन से क्या संबंध रहा है?
अनवर ढेबर और पप्पू बंसल जैसे नाम पार्टी के किसी भी जन आंदोलन में 2018 से पहले कहीं नहीं दिखे।
विजय भाटिया, जिन पर पूर्ववर्ती बीजेपी शासन के दौरान हर मंत्री से ‘सैटिंग’ करने के आरोप हैं, आज पार्टी के फैसलों में शामिल कैसे हो गए?
इन नामों पर सवाल उठाते हुए कहा गया है कि यह वही मंडली है जिसने सत्ता का लाभ उठाया, करोड़ों कमाए, जबकि जमीनी कार्यकर्ता केवल ट्रैफिक पुलिस से जूझकर सरकार का जश्न मनाते रहे।
पार्टी का गौरवशाली इतिहास और आज की स्थिति
वरिष्ठ कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा और अजीत जोगी जैसे नेताओं को याद करते हुए कार्यकर्ताओं ने कहा कि:
जब मोतीलाल वोरा का नाम नेशनल हेराल्ड में आया, तब उन्होंने पार्टी के नाम पर कोई प्रदर्शन नहीं किया।
जब अजीत जोगी के पुत्र को जग्गी हत्याकांड में घसीटा गया, तब भी कोई आंदोलन नहीं हुआ। वे उस समय छत्तीसगढ़ के जननायक थे।
आज, जब बस्तर टाइगर कवासी लखमा छह माह से जेल में हैं, तब बस्तर में चक्का जाम क्यों नहीं हुआ? क्यों उनके अपने भाई हरीश लखमा जैसे नेता भी चुप हैं?
“बाप-बेटे की जोड़ी अब अदाणी का विरोध कर रही, जिनको खुद ने ज़मीन दी थी”
आरोप यह भी लगाए जा रहे हैं कि भूपेश बघेल और उनके पुत्र आज अदाणी का विरोध कर रहे हैं, जबकि तमनार में खनन क्षेत्र का आबंटन खुद उनके शासनकाल में ही हुआ था।
विरोधियों का मानना है कि अगर 2.5 साल की सत्ता में बदलाव के वादे के तहत टी.एस. सिंहदेव (बाबा) को मुख्यमंत्री बना दिया गया होता, तो आज कांग्रेस सत्ता में बनी रहती।
क्या कांग्रेस का असली सिपाही अब भी किनारे है?
राज्य के असंतुष्ट नेताओं का मानना है कि आज कांग्रेस की लड़ाई गुटों की राजनीति में फंस कर रह गई है। वो सच्चे कार्यकर्ता, जो आंदोलन की नींव हैं, उन्हें केवल इस्तेमाल किया जा रहा है। कांग्रेस में आज नेतृत्व पर सवाल खड़े हैं—नैतिकता, ईमानदारी और त्याग की राजनीति क्या केवल भाषणों तक सीमित रह गई है?
नोट: यह रिपोर्ट उन कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं की राय पर आधारित है जो हालिया गतिविधियों से असहमति जताते हैं। पार्टी के अन्य पक्ष की प्रतिक्रिया मिलते ही इस समाचार को अपडेट किया जाएगा।
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