Ticker

6/recent/ticker-posts

17 से 22 अक्टूबर के बीच शासकीय भूमियों की हुई जमकर बिक्री, जांच हुई तो खुलेंगे बड़े राज - सुत्र

भू-माफियाओं के आगे नतमस्त हुआ प्रशासन, रजिस्ट्री कार्यालय बना भ्रष्टाचार का अड्डा


कोरिया।  जिले में भू-माफियाओं का आतंक किसी से छिपा नहीं है। प्रशासन और राजस्व विभाग की नाक के नीचे शासकीय भूमियों की अवैध खरीद-बिक्री लगातार जारी है। हाल ही में 17 अक्टूबर से 22 अक्टूबर के बीच बैकुण्ठपुर रजिस्ट्री कार्यालय में जो भूमि विक्रय हुए हैं, यदि उनकी बारीकी से जांच की जाए तो ऐसे चौंकाने वाले तथ्य सामने आ सकते हैं जिससे अधिकारी भी भौचक्के रह जाएंगे।


दरअसल, दीपावली के आसपास जब लोग अपने घरों में खुशियां मनाने की तैयारी कर रहे थे, उसी दौरान रजिस्ट्री कार्यालय में कुछ भू-माफियाओं और राजस्व तंत्र से जुड़े लोगों की चांदी कट रही थी। सूत्रों के अनुसार, उप-पंजीयक (Sub-Registrar) के अवकाश पर रहने का लाभ उठाकर कुछ दलालों ने मिलकर शासकीय भूमियों की रजिस्ट्रियां कर डालीं, इसके पहले भी हुई एक वर्ष की रजिस्ट्रियों की सूक्ष्म जांच जरुरी।


यह कोई एक-दो मामलों तक सीमित नहीं है। बताया जा रहा है कि सर्वे नंबर 32, 402/3, 255/2, 27, 1045, 103 सहित कई शासकीय भूमि की अवैध रजिस्ट्रियां की गई हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि जब लगातार समाचारों के माध्यम से इस तरह की गतिविधियों की जानकारी दी जा रही है, तब भी कोरिया प्रशासन क्यों मौन है? क्या रजिस्ट्री कार्यालय पर प्रशासन का कोई नियंत्रण नहीं रह गया है? स्थिति यह है कि एक ओर शासन को शासकीय कार्यों के लिए भूमि नहीं मिल रही, वहीं दूसरी ओर उन्हीं शासकीय भूमियों को निजी व्यक्तियों के नाम बेच दिया जा रहा है। यह स्थिति प्रशासन के लिए दोहरी चुनौती बन चुकी है। स्थानीय सूत्रों का कहना है कि जब कोई आम नागरिक अपनी वर्षों पुरानी कब्जे की भूमि का नामांतरण या विक्रय करना चाहता है, तो उसे छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता 1959 की तमाम धाराओं और प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। लेकिन जब बात भू-माफियाओं की आती है, तो सारे नियम-कानून महज़ कागजों तक सिमट कर रह जाते हैं। भू-माफियाओं का नेटवर्क इतना मजबूत है कि उनका दबदबा राष्ट्रीय राजमार्ग से सटे खरवत, चेरवापारा, उरुमदुगा, रामपुर और आनी क्षेत्र की भूमि में विशेष रूप से देखा जा सकता है। यही नहीं, कुछ पटवारियों का आतंक सलका, सलबा, मनसुख और वस्ती जैसे गांवों में भी फैला हुआ है। बताया जाता है कि इन क्षेत्रों में पटवारियों ने किसानों के साथ मिलकर फर्जी सीमांकन और शासकीय भूमि को निजी बताकर अवैध रजिस्ट्रियां कराई हैं। पूर्व में कोरिया जिले के कलेक्टर रहे विनय लंगेह ने इस तरह के कई मामलों में सख्त कार्रवाई की थी, यहाँ तक कि तहसीलदार स्तर के अधिकारियों को भी नहीं बख्शा गया था। लेकिन अब शिकायतें या तो फाइलों में दबा दी जाती हैं या कचरे के डिब्बे में फेंक दी जाती हैं। यदि 17 से 22 अक्टूबर के बीच हुई सभी भूमि रजिस्ट्रियों की निष्पक्ष जांच की जाए तो प्रशासन की कई परतें खुल सकती हैं। सवाल यह भी है कि क्या इस बार भी जांच केवल छोटे कर्मचारियों तक ही सीमित रहेगी या फिर बड़ी मछलियों पर भी शिकंजा कसेगा? बरहाल, देखना यह होगा कि बैकुण्ठपुर रजिस्ट्री कार्यालय में हुई इन संदिग्ध रजिस्ट्रियों पर प्रशासन वास्तव में कार्रवाई करता है या फिर यह मामला भी अन्य कई मामलों की तरह फाइलों में गुम हो जाएगा।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ