सूरजपुर। जिला अंतर्गत आने वाले प्रतापपुर विकासखंड के ग्राम पंचायत दूरती का उप स्वास्थ्य केंद्र अपनी जर्जर हालत में जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहा है। महज करीब छह वर्ष पहले बने इस भवन की छत ढहने की कगार पर पहुंच चुकी है, दीवारें दरक रही हैं, और बरसात का पानी रिसकर दवाइयों, बेड और चिकित्सा उपकरणों को बर्बाद कर रहा है। मौसमी बीमारियों के प्रकोप के बीच इस केंद्र में तैनात चार कर्मचारी अपनी जान जोखिम में डालकर प्रतिदिन तकरीबन 30 से 40 ग्रामीणों का इलाज करने को मजबूर हैं। यह केंद्र, जो ग्रामीणों के लिए स्वास्थ्य सुविधा का एकमात्र सहारा है, अब खुद इलाज का इंतजार कर रहा है। बहरहाल यह उप स्वास्थ्य केंद्र आसपास के कई गांवों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं का केंद्र बिंदु है। लेकिन इसकी जर्जर हालत न केवल मरीजों के लिए खतरा है, बल्कि कर्मचारियों के लिए भी जोखिम भरी है। मौसमी बीमारियों जैसे डेंगू, मलेरिया और वायरल बुखार के बढ़ते मामलों के बीच इस केंद्र की स्थिति ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली को उजागर करती है। वहीं दूसरी तरफ ग्रामीणों ने मांग की है कि प्रशासन तत्काल इस केंद्र की मरम्मत करे या नया भवन बनाए, ताकि सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकें। साथ ही, कर्मचारियों ने बेहतर सुविधाओं और संसाधनों की मांग की है, ताकि वे बिना डर के अपनी जिम्मेदारी निभा सकें। सवाल यह है कि आखिर कब तक ग्रामीण इस जर्जर व्यवस्था के भरोसे जीने को मजबूर रहेंगे...? क्या प्रशासन तब जागेगा, जब कोई अनहोनी हो जाएगी? दूरती का यह उप स्वास्थ्य केंद्र न केवल मरम्मत की मांग कर रहा है, बल्कि ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की एक पुकार भी है।
खतरे के साये में इलाज: दूरती का उप स्वास्थ्य केंद्र इस कदर जर्जर हो चुका है कि यहां हर पल हादसे का डर बना रहता है। छत का ऊपरी हिस्सा गिर चुका है, और बारिश का पानी रिसकर कमरों को कीचड़मय बना देता है। दवाइयां और चिकित्सा सामग्री गीली होकर खराब हो रही हैं, जिससे मरीजों के इलाज में बाधा उत्पन्न हो रही है। कर्मचारियों का कहना है कि बारिश के मौसम में स्थिति और भी बदतर हो जाती है। एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "हम हर दिन डर के साये में काम करते हैं। कभी भी छत का कोई हिस्सा गिर सकता है, लेकिन मरीजों को देखना हमारी मजबूरी है।"
ग्रामीणों की व्यथा: स्थानीय निवासियों का कहना है कि इस केंद्र पर इलाज कराने में उनकी जान सांसत में रहती है। ग्रामीण ने बताया, "जब हम बीमार होकर यहां आते हैं, तो इलाज से ज्यादा भवन की हालत डराती है। कभी-कभी तो लगता है कि दवा लेने आए हैं या जान गंवाने।" गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए यह केंद्र एकमात्र सहारा है, लेकिन इसकी बदहाली के कारण लोग अब नजदीकी शहरों की ओर रुख करने लगे हैं, जो गरीब परिवारों के लिए महंगा और असुविधाजनक है।
प्रशासन की उदासीनता: ग्रामीणों ने कई बार जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग से इस केंद्र की मरम्मत या नए भवन के निर्माण की मांग की है, लेकिन उनकी गुहार जिम्मेदार सुनकर अनसुनी कर दिए । ग्रामीण पूछते हैं कि क्या कोई बड़ा हादसा होने का इंतजार किया जा रहा है...?
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