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तलवापारा एसएलआरएम सेंटर बना कबाड़ियों का अड्डा: जिला अस्पताल की दवाएं कबाड़ में मिलीं, शासकीय संसाधनों की अनदेखी और दुरुपयोग उजागर

 


कोरिया। ग्राम पंचायत तलवापारा अंतर्गत स्थापित एसएलआरएम (सॉलिड एंड लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट) सेंटर में अवैध कबाड़ियों द्वारा शासकीय भवन पर कब्जा कर कबाड़ का अड्डा बना लेने का मामला सामने आया है। इस मामले में न केवल ग्राम पंचायत की लापरवाही उजागर हुई है, बल्कि जिला प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग के कार्यप्रणाली पर भी गंभीर सवाल उठ रहे हैं। स्थानीय स्तर पर प्राप्त जानकारी के अनुसार, एसएलआरएम सेंटर में कबाड़ के ढेर में जिला चिकित्सालय से संबंधित दवाएं भी मिलीं हैं, जिनमें से एक इंजेक्शन की शीशी की एक्सपायरी साल 2029 तक की है। यह इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि यह दवाएं हाल ही में किसी स्वास्थ्य केंद्र से निकली हैं और इनका इस प्रकार कबाड़ में पाया जाना दवा की चोरी या अनाधिकृत तरीके से बिक्री की ओर इशारा करता है। जब इस संदिग्ध गतिविधि की जानकारी के लिए पूछताछ की गई, तो एक युवक स्वयं को कबाड़ का मालिक बताते हुए सामने आया, लेकिन जैसे ही उससे सवाल-जवाब शुरू हुए, वह मोबाइल बंद कर मौके से फरार हो गया। यह घटना संदेह को और अधिक गहरा करती है।

शासकीय सामान भी लावारिस


कबाड़ में स्वच्छता किट, डस्टबिन, झाड़ू, प्लास्टिक कचरा बैग, तथा चार कचरा उठाने वाले रिक्शा भी मिले हैं। ये सभी सामान जिला पंचायत द्वारा ग्राम पंचायत को स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत दिए गए थे, जिनका उपयोग कभी नहीं हुआ और वर्षों से लावारिस स्थिति में पड़े-पड़े खराब हो चुके हैं। इससे साफ है कि न केवल जनता के टैक्स का पैसा बर्बाद हुआ, बल्कि पंचायत द्वारा स्वच्छता मिशन की गंभीर उपेक्षा भी की गई।

सरपंच व सचिव की अनभिज्ञता आश्चर्यजनक

इस पूरे मामले पर जब ग्राम पंचायत के सरपंच एवं सचिव से जानकारी ली गई तो उन्होंने अवैध रूप से रखे गए कबाड़ के बारे में कोई भी जानकारी होने से इंकार किया। यह दर्शाता है कि या तो वे अपनी जिम्मेदारी से अनभिज्ञ हैं या फिर जानबूझकर इस पूरे मामले को नजरअंदाज कर रहे हैं।

दो ट्रैक्टर कबाड़ हटाया गया, लेकिन संदेह बरकरार


स्थानीय लोगों के विरोध के बाद पंचायत द्वारा मौके से दो ट्रैक्टर कबाड़ हटवाया गया, परंतु अभी भी परिसर में कई संदेहास्पद वस्तुएं मौजूद हैं। जरूरत है कि प्रशासन इस स्थल की पूरी जांच कराए, खासकर यह पता लगाया जाए कि जिला चिकित्सालय की दवाएं कब और कैसे वहां पहुँचीं।

निष्कर्ष

यह मामला न सिर्फ शासकीय संपत्ति के दुरुपयोग, बल्कि जनता के पैसों की बर्बादी और स्वास्थ्य सुरक्षा के साथ खिलवाड़ का गंभीर उदाहरण है। ज़रूरी है कि इस पर उच्चस्तरीय जांच हो और दोषियों के खिलाफ तत्काल सख्त कार्रवाई की जाए। यह जांच केवल पंचायत स्तर पर सीमित न रहकर जिला स्वास्थ्य विभाग, स्वच्छता मिशन, और दवा आपूर्ति विभाग तक होनी चाहिए ताकि आगे ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।

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