कोरिया। स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में कार्यरत संविदा शिक्षकों और कर्मचारियों ने अपनी दो सूत्रीय मांगों को लेकर रविवार, 20 जुलाई को प्रदेशभर के 28 जिलों में एक दिवसीय सांकेतिक धरना प्रदर्शन किया। यह प्रदर्शन छत्तीसगढ़ स्वामी आत्मानंद संविदा शिक्षक एवं कर्मचारी संघ के बैनर तले आयोजित किया गया। प्रदर्शन के तहत शिक्षकों और कर्मचारियों ने मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नाम ज्ञापन सौंपा। कोरिया जिले में संघ के अध्यक्ष गोपाल दत्त उर्मलिया ने बताया कि जिले के सभी संविदा शिक्षक एवं कर्मचारी इस आंदोलन का पूर्ण समर्थन करते हैं। उन्होंने विश्वास जताया कि शासन उनकी मांगों पर सकारात्मक निर्णय लेगी। संघ के प्रदेश अध्यक्ष दुर्योधन यादव के मार्गदर्शन में हुए इस प्रदर्शन के माध्यम से संविदा शिक्षकों ने नियमित वेतन वृद्धि एवं वेतनमान निर्धारण तथा शिक्षा विभाग में समावेशन एवं नियमितीकरण की मांग प्रमुखता से उठाई। शिक्षकों ने कहा कि वे बीते कई वर्षों से पूर्णकालिक सेवाएं दे रहे हैं, बावजूद इसके उन्हें अभी तक कोई वेतनमान तय नहीं हुआ है और न ही वार्षिक वेतनवृद्धि का लाभ मिल रहा है। संघ ने यह भी बताया कि पूर्व शिक्षा मंत्री एवं वर्तमान सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने भी संविदा शिक्षकों की मांग को सार्वजनिक मंच से उचित ठहराया था। शिक्षकों का कहना है कि यदि उन्हें शिक्षा विभाग में समाहित कर नियमित किया जाए तो वे सेवा सुरक्षा के साथ अधिक निष्ठा से कार्य कर सकेंगे, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता भी बेहतर होगी।
14 हजार से अधिक संविदा शिक्षक कर रहे सेवाएं
प्रदेशभर में आत्मानंद स्कूलों में कार्यरत संविदा शिक्षकों की संख्या 13 से 14 हजार के बीच है। वहीं, इन्हीं पदों पर कार्यरत नियमित शिक्षकों को 10 से 15 हजार रुपये अधिक वेतन दिया जा रहा है, जिससे असमानता की स्थिति बनी हुई है।
2020 से दे रहे सेवा, फिर भी समय पर नहीं मिलता मानदेय
संविदा शिक्षक एवं कर्मचारी वर्ष 2020 से आत्मानंद स्कूलों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन कई जिलों में उन्हें समय पर मानदेय नहीं मिल पा रहा है, जिससे उन्हें आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है। इसके बावजूद उन्होंने सीमित संसाधनों में उत्कृष्ट शैक्षणिक और प्रशासनिक कार्य किए हैं। उन्होंने स्कूलों को राज्य के अग्रणी शिक्षण संस्थानों की श्रेणी में लाने में अहम भूमिका निभाई है। संविधानिक और मानवीय दृष्टिकोण से भी शिक्षकों की इन मांगों को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। अब यह देखना होगा कि सरकार इन शिक्षकों की आवाज पर कितना ध्यान देती है।
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